Panchang Today: October 04, 2024

आज पंचांग 04 अक्टूबर, 2024

Panchang, जो एक प्राचीन हिंदू कैलेंडर है, हिंदू संस्कृति में अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। संस्कृत के शब्द “पंच” जिसका अर्थ है “पाँच” और “अंग” जिसका अर्थ है “भाग,” से उत्पन्न, पंचांग एक पारंपरिक हिंदू कैलेंडर के पाँच घटकों का उल्लेख करता है: तिथि (चंद्र दिवस), वार (सप्ताह का दिन), नक्षत्र (तारा), योग और करण। यह एक व्यापक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है, जो विभिन्न गतिविधियों के लिए शुभ और अशुभ समय के बारे में जानकारी प्रदान करता है, और जीवन को ब्रह्मांडीय ऊर्जा के साथ संरेखित करने में सहायता करता है।

Panchang Today

आज का हिंदू पंचांग

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आज पंचांग 04 अक्टूबर, 2024



शुभ शुक्रवार – – शुभ प्रभात्

74-30 मध्यमान75-30

दैनिक पंचांग विवरण

आज दिनांक……………….. .04.10.2024

कलियुग संवत्…………………………5126

विक्रम संवत्………………………….. 2081

शक संवत्……………………………..1946

संवत्सर………………………….श्री कालयुक्त

अयन………………………………दक्षिणायन

गोल……………………………………दक्षिण

ऋतु………………………………………शरद्

मास…………………………………..आश्विन

पक्ष………………………………………कृष्ण

तिथि….. द्वितीया. रात्रि. 5.31* तक / तृतीया

वार……………………………………शुक्रवार

नक्षत्र………..चित्रा. रात्रि. 6.38 तक / स्वाति

चंद्रराशि……………… तुला. संपूर्ण (अहोरात्र)

योग…….वैधृति. रात्रि. 5.20* तक / विष्कुंभ

करण………………बालव. अपरा. 4.15 तक

करण…… कौलव. रात्रि. 5.31* तक / तैत्तिल

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नोट-जिस रात्रि समय के ऊपर(*) लगा हुआ हो

वह समय अर्द्ध रात्रि के बाद सूर्योदय तक का है

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विभिन्न नगरों के सूर्योदय में समयांतर मिनट

दिल्ली -10 मिनट———जोधपुर +6 मिनट

जयपुर -5 मिनट——अहमदाबाद +8 मिनट

कोटा – 5 मिनट————-मुंबई +7 मिनट

लखनऊ – 25 मिनट——बीकानेर +5 मिनट

कोलकाता -54 मिनट–जैसलमेर +15 मिनट

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सूर्योंदयास्त दिनमानादि-अन्य आवश्यक सूची

सूर्योदय…………………. प्रातः 6.26.05 पर

सूर्यास्त…………………. सायं. 6.13.37 पर

दिनमान-घं.मि.सै…………………11.47.32

रात्रिमान-घं.मि.सै……………….. 12.12.53

चंद्रोदय……………………7.32.02 AM पर

चंद्रास्त…………………… 7.02.13 PM पर

राहुकाल.पूर्वा.10.51 से 12.20 तक(अशुभ)

यमघंट… अपरा. 3.17 से 4.45 तक (अशुभ)

गुलिक……………..प्रातः 7.55 से 9.23 तक

अभिजित………मध्या.11.56 से 12.43 तक

पंचक…………………………………. .नहीं है

हवन मुहूर्त(अग्निवास)…………..आज नहीं है

दिशाशूल………………………… पश्चिम दिशा

दोष परिहार…….. जौ का सेवन कर यात्रा करें

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विशिष्ट काल-मुहूर्त-वेला परिचय

अभिजित् मुहुर्त – दिनार्द्ध से एक घटी पहले और एक घटी बाद का समय अभिजित मुहूर्त कहलाता है,पर बुधवार को यह शुभ नहीं होता.

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ब्रह्म मुहूर्त – सूर्योदय से पहले का 1.30 घंटे का समय ब्रह्म मुहूर्त कहलाता है..

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प्रदोष काल – सूर्यास्त के पहले 45 मिनट और बाद का 45 मिनट प्रदोष माना जाता है…

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गौधूलिक काल सूर्यास्त से 12 मिनट पहले एवं 12 मिनट बाद का समय कहलाता है

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भद्रा वास शुभाशुभ विचार

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भद्रा मेष, वृष, मिथुन, वृश्चिक के चंद्रमा में स्वर्ग में व कन्या, तुला, धनु, मकर के चंद्रमा में पाताल लोक में और कुंभ, मीन, कर्क, सिंह के चंद्रमा में मृत्युलोक में मानी जाती है यहां स्वर्ग और पाताल लोक की भद्रा शुभ मानी जाती हैं और मृत्युलोक की भद्रा काल में शुभ कार्य वर्जित होते हैं इसी तरह भद्रा फल विचार करें..

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* दैनिक सूर्योदय कालीन लग्न एवं ग्रह स्पष्ट *

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ग्रह राशि अंश कला नक्षत्र चरण चरणाक्षर

लग्न ……………….कन्या 16°41′ हस्त 3 ण

सूर्य …………………कन्या 17°6′ हस्त 3 ण

चन्द्र …………………तुला 0°40′ चित्रा 3 रा

बुध ^ ……………..कन्या 19°33′ हस्त 3 ण

शुक्र ………………. तुला 19°7′ स्वाति 4 ता

मंगल ………….मिथुन 22°14′ पुनर्वसु 1 के

बृहस्पति * …… वृषभ 27°3′ मृगशीर्षा 2 वो

शनि * ……….कुम्भ 20°2′ पूर्वभाद्रपद 1 से

राहू * ……….मीन 12°5′ उत्तरभाद्रपद 3 झ

केतु * ………………कन्या 12°5′ हस्त 1 पू

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दिन का चौघड़िया

चंचल……………..प्रातः 6.26 से 7.55 तक

लाभ………………प्रातः 7.55 से 9.23 तक

अमृत……………प्रातः 9.23 से 10.51 तक

शुभ……………अपरा. 12.20 से 1.48 तक

चंचल……………..सायं. 4.45 से 6.14 तक

रात्रि का चौघड़िया

लाभ…………… रात्रि. 9.17 से 10.48 तक

शुभ…रात्रि. 12.20 AM से 1.52 AM तक

अमृत… रात्रि. 1.52 AM से 3.23 AM तक

चंचल….रात्रि. 3.23 AM से 4.55 AM तक

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(विशेष – ज्योतिष शास्त्र में एक शुभ योग और एक अशुभ योग जब भी साथ साथ आते हैं तो शुभ योग की स्वीकार्यता मानी गई है )

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शुभ शिववास की तिथियां

शुक्ल पक्ष-2—–5—–6—- 9——-12—-13.

कृष्ण पक्ष-1—4—-5—-8—11—-12—-30.

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दिन नक्षत्र एवं चरणाक्षर संबंधी संपूर्ण विवरण

संदर्भ विशेष -यदि किसी बालक का जन्म गंड नक्षत्रों (रेवती, अश्विनी, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा और मूल) में होता है तो सविधि नक्षत्र शांति की आवश्यक मानी गयी है और करवाना चाहिये..

आज जन्मे बालकों का नक्षत्र के चरण अनुसार राशिगत् नामाक्षर..

11.51 AM तक—–चित्रा—-3——रा

06.38 PM तक—–चित्रा—-4——री

01.22 AM तक—–स्वाति—1——रू

उपरांत रात्रि तक—–स्वाति—2——-रे

राशि तुला – पाया चांदी

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आज का दिन 04/10/2024

व्रत विशेष……………………………. .नहीं है

अन्य व्रत……….. ..नवरात्रि व्रत विधान जारी

दिन विशेष……………… चंद्रदर्शन सायंकाल

नवरात्रि क्रम…द्वितीय (मां ब्रह्मचारिणी पूजन)

पर्व विशेष………………………………नहीं है

समय विशेष……पवित्र चातुर्मास विधान जारी

दिवस विशेष…………………विश्व पशु दिवस

पंचक…………………………………. .नहीं है

विष्टि(भद्रा)……………………………..नहीं है

हवन मुहूर्त………………………..आज नहीं है

खगोलीय.विशाखायां. शुक्र. रात्रि.12.13* पर

सर्वा.सि.योग………………………… .. नहीं है

अमृत सि.योग………………………… .नहीं है

सिद्ध रवियोग…………………………. नहीं है

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अगले दिन की प्रतीकात्मक जानकारी

दिनांक………………………..05.10.2024

तिथि……….. आश्विन शुक्ला तृतीया शनिवार

व्रत विशेष…………………………….. नहीं है

अन्य व्रत…………..नवरात्रि व्रत विधान जारी

दिन विशेष……………………………. नहीं है

नवरात्रि क्रम…….. तृतीय (मां चंद्रघंटा पूजन)

पर्व विशेष………………………………नहीं है

समय विशेष……पवित्र चातुर्मास विधान जारी

दिवस विशेष……………. विश्व शिक्षक दिवस

पंचक…………………………………. नहीं है

विष्टि(भद्रा)……………………………..नहीं है

हवन मुहूर्त…………………………… आज है

(नवरात्रि में सभी 9 दिन हवन हो सकता है)

खगोलीय………………………………. नहीं है

सर्वा.सि.योग………. उदयात् रात्रि. 9.33 तक

अमृत सि.योग………………………… .नहीं है

सिद्ध रवियोग…….. रात्रि. 9.33 से रात्रि पर्यंत


आज विशेष

Panchang Today: October 04, 2024


नवरात्रि अनुष्ठान हेतु दुर्गा पूजा-पाठ की विधि

नवरात्रि में दुर्गा पूजा-पाठ की यह विधि यहां संक्षिप्त रूप से दी जा रही है। नवरात्रि आदि विशेष अवसरों पर तथा शतचंडी आदि वृहद् अनुष्ठानों में विस्तृत विधि का उपयोग किया जाता है। उसमें यन्त्रस्थ कलश, गणेश, नवग्रह, मातृका, वास्तु, सप्तर्षि, सप्तचिरंजीव, 64 योगिनी, 49 क्षेत्रपाल तथा अन्यान्य देवताओं की वैदिक विधि से पूजा होती है। अखंड दीप की व्यवस्था की जाती है।

देवी प्रतिमा की अंग-न्यास और अग्न्युत्तारण आदि विधि के साथ विधिवत्‌ पूजा की जाती है। नवदुर्गा पूजा, ज्योतिःपूजा, बटुक-गणेशादिसहित कुमारी पूजा, अभिषेक, नान्दीश्राद्ध, रक्षाबंधन, पुण्याहवाचन, मंगलपाठ, गुरुपूजा, तीर्थावाहन, मंत्र-खान आदि, आसनशुद्धि, प्राणायाम, भूतशुद्धि, प्राण-प्रतिष्ठा, अन्तर्मातृकान्यास, बहिर्मातृकान्यास, सृष्टिन्यास, स्थितिन्यास, शक्तिकलान्यास, शिवकलान्यास, हृदयादिन्यास, षोडशान्यास, विलोम-न्यास, तत्त्वन्यास, अक्षरन्यास, व्यापकन्यास, ध्यान, पीठपूजा, विशेषार्घ्य, क्षेत्रकीलन, मन्त्र पूजा, विविध मुद्रा विधि, आवरण पूजा एवं प्रधान पूजा आदि का शास्त्रीय पद्धति के अनुसार अनुष्ठान होता है।

इस प्रकार विस्तृत विधि से पूजा करने की इच्छा वाले भक्तों को अन्यान्य पूजा-पद्धतियों की सहायता से भगवती की आराधना करके पाठ आरंभ करना चाहिए।

साधक स्नान करके पवित्र हो, आसन-शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके शुद्ध आसन पर बैठे, साथ में शुद्ध जल, पूजन-सामग्री और श्री दुर्गा सप्तशती की पुस्तक रखें। पुस्तक को अपने सामने काष्ठ आदि के शुद्ध आसन पर विराजमान कर दें। ललाट में अपनी रुचि के अनुसार भस्म, चंदन अथवा रोली लगा लें, शिखा बांध लें, फिर पूर्वाभिमुख होकर तत्त्व-शुद्धि के लिए चार बार आचमन करें।

उस समय निम्नांकित चार मंत्रों को क्रमशः पढ़ें –

ॐ ऐं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।

ॐ ह्रीं विद्यातत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।

ॐ क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा ।

तत्पश्चात्‌ प्राणायाम करके गणेश आदि देवताओं एवं गुरुजनों को प्रणाम करे, फिर ‘पवित्रे स्थो वैष्णव्यौ’ इत्यादि मंत्र से कुश की पवित्री धारण करके हाथ में लाल फूल, अक्षत और जल लेकर संकल्प करें। संकल्प करके देवी का ध्यान करते हुए पंचोपचार की विधि से पुस्तक की पूजा करें, योनि-मुद्रा का प्रदर्शन करके भगवती को प्रणाम करे, फिर मूल नवार्ण मंत्र से पीठ आदि में आधारशक्ति की स्थापना करके उसके ऊपर पुस्तक को विराजमान करें।

इसके बाद शापोद्वार करना चाहिए। इसके अनेक प्रकार हैं। ‘ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिकादेव्यै शापनाशानुग्रहं कुरु कुरु स्वाहा’ – इस मंत्र का आदि और अन्त में सात बार जप करे। यह शापोद्वारमन्त्र कहलाता है।

इसके अनन्तर उत्कीलन-मंत्र का जप किया जाता है। इसका जप आदि और अन्त में इक्कीस-इक्कीस बार होता है। यह मन्त्र इस प्रकार है – ‘ॐ ह्रीं क्लीं ह्रीं सप्तशति चण्डिके उत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा।’ इसके जप के पश्चात्‌ आदि और अन्त में सात-सात बार मृत-संजीवनी विद्या का जप करना चाहिए।

इस प्रकार शापोद्धार करने के अनंतर अन्तर्मातृकाबहिर्मातृका आदि न्यास करें, फिर भगवती का ध्यान करके रहस्य में बताये अनुसार नौ कोष्ठों वाले यन्त्र में महालक्ष्मी आदि का पूजन करें, इसके बाद छः अंगो सहित दुर्गा सप्तशती का पाठ आरम्भ किया जाता है।

कवच, अर्गला, कीलक और तीनों रहस्य – ये ही सप्तशती के छः अंग माने गए हैं। उनके क्रम में भी मतभेद है। चिदम्बर संहिता में पहले अर्गला, फिर कीलक तथा अन्त में कवच पढ़ने का विधान है। किंतु योगरत्नावली में पाठ का क्रम इससे भिन्न है। उसमें कवच को बीज, अर्गला को शक्ति तथा कीलक को कीलक-संज्ञा दी गई है। जिस प्रकार सब मन्त्रों में पहले बीज का, फिर शक्ति तथा अंत में कीलक का उच्चारण होता है। उसी प्रकार यहां भी पहले कवच रूप बीज का, फिर अर्गलारूपा शक्ति का तथा अंत में की‍लक रूप कीलक का क्रमश: पाठ होना चाहिए।


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Astro Guru Ji

Mayank Agnihotri

दैनिक जीवन में पंचांग का महत्व

आधुनिक समय में भी पंचांग एक अमूल्य साधन बना हुआ है, जो लाखों लोगों को शादी, सगाई, यात्रा, व्यापारिक उद्यम और धार्मिक समारोहों जैसे महत्वपूर्ण निर्णय लेने में मार्गदर्शन करता है। यह केवल एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि यह ब्रह्मांडीय ज्ञान का भंडार है, जो विशेष ज्योतिषीय संयोजनों के दौरान की गई गतिविधियों के परिणामों को प्रभावित करने में सक्षम माना जाता है।

तिथि: चंद्र दिवस

तिथि चंद्रमा के चरण को दर्शाती है और अनुष्ठानों और समारोहों के लिए शुभ समय निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसमें 30 तिथियाँ होती हैं, जिनमें प्रत्येक तिथि सूर्य और चंद्रमा के बीच के विशिष्ट कोण का प्रतिनिधित्व करती है। प्रतिपदा (पहले दिन) से लेकर अमावस्या (नई चंद्र) और पूर्णिमा (पूर्ण चंद्र) तक, प्रत्येक तिथि का विशिष्ट महत्व होता है, जो मानव भावनाओं, क्रियाओं और आध्यात्मिक प्रयासों को प्रभावित करता है।

वार: सप्ताह का दिन

वार सप्ताह के दिनों को संदर्भित करता है, और प्रत्येक दिन एक देवता से जुड़ा होता है। विभिन्न सप्ताह के दिनों का विशिष्ट गतिविधियों पर प्रभाव को समझने से उत्पादकता और सफलता को अधिकतम करने में मदद मिलती है। उदाहरण के लिए, सोमवार, जिसे चंद्रमा का दिन माना जाता है, नए कार्यों की शुरुआत के लिए शुभ होता है, जबकि शनिवार, जो शनि से शासित होता है, आध्यात्मिक अभ्यास और आत्म-निरीक्षण के लिए अनुकूल होता है।

नक्षत्र: चंद्र नक्षत्र

नक्षत्र 27 चंद्र नक्षत्रों को दर्शाता है जिनसे चंद्रमा अपने मासिक चक्र के दौरान गुजरता है। प्रत्येक नक्षत्र मानव गतिविधियों पर एक विशिष्ट प्रभाव डालता है, जैसे व्यक्तित्व गुण, करियर के चुनाव, और संबंधों की गतिशीलता। अनुकूल नक्षत्रों के साथ कार्यों को संरेखित करने से व्यक्ति की समृद्धि और भलाई को बढ़ावा मिल सकता है।

योग: संयोजन

योग सूर्य और चंद्रमा की स्थितियों द्वारा बनाए गए शुभ या अशुभ संयोजनों को दर्शाता है। 27 योग होते हैं, जिनमें से प्रत्येक के अनूठे गुण और प्रभाव होते हैं। शुभ योगों की ऊर्जा का उपयोग करके व्यक्ति अपने प्रयासों में सफलता और संतुष्टि प्राप्त कर सकता है।

करण: आधा चंद्र दिवस

करण तिथि का आधा हिस्सा होता है और कार्यों की शुरुआत को प्रभावित करता है। 11 करण होते हैं जिन्हें दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है – स्थिर और चल। कार्यों की शुरुआत के लिए एक उपयुक्त करण का चयन करना अनुकूल परिणाम सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण होता है।

Panchang Today: October 04, 2024

तिथि विश्लेषण

कृष्ण पक्ष द्वादशी: आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने और परोपकारी कार्यों में संलग्न होने के लिए आदर्श।

रोहिणी नक्षत्र: कलात्मक गतिविधियों, रचनात्मकता और संबंधों के पोषण के लिए अनुकूल।

वृद्धि योग: विकास-उन्मुख गतिविधियों और वित्तीय निवेशों के लिए उपयुक्त।

तैतिल करण: सहनशक्ति और धैर्य की आवश्यकता वाले कार्यों के लिए अनुकूल।

पंचांग की शक्ति का उपयोग

दैनिक जीवन में पंचांग के अंतर्दृष्टियों को शामिल करने से व्यक्ति को ब्रह्मांडीय लय के साथ सामंजस्य स्थापित करने में मदद मिलती है, जिससे वे ज्ञान और गरिमा के साथ चुनौतियों का सामना कर सकते हैं। पंचांग द्वारा प्रदान किए गए मार्गदर्शन का उपयोग करके, व्यक्ति सभी प्रयासों में सफलता और संतुष्टि के अवसरों को अधिकतम कर सकता है।

निष्कर्ष

पंचांग अपने जटिल ज्ञान और ब्रह्मांडीय अंतर्दृष्टियों के साथ जीवन की यात्रा में मार्गदर्शन का दीपस्तंभ है। इसके शिक्षाओं को अपनाने से व्यक्ति समृद्धि के मार्ग पर आगे बढ़ता है, अपने कार्यों को ब्रह्मांडीय ऊर्जा के साथ संरेखित कर संपूर्ण कल्याण प्राप्त करता है।

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