आज पंचांग 03 अक्टूबर, 2024
Panchang, जो एक प्राचीन हिंदू कैलेंडर है, हिंदू संस्कृति में अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। संस्कृत के शब्द “पंच” जिसका अर्थ है “पाँच” और “अंग” जिसका अर्थ है “भाग,” से उत्पन्न, पंचांग एक पारंपरिक हिंदू कैलेंडर के पाँच घटकों का उल्लेख करता है: तिथि (चंद्र दिवस), वार (सप्ताह का दिन), नक्षत्र (तारा), योग और करण। यह एक व्यापक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है, जो विभिन्न गतिविधियों के लिए शुभ और अशुभ समय के बारे में जानकारी प्रदान करता है, और जीवन को ब्रह्मांडीय ऊर्जा के साथ संरेखित करने में सहायता करता है।
आज का हिंदू पंचांग
आज पंचांग 03 अक्टूबर, 2024
शुभ गुरुवार – – शुभ प्रभात्
74-30 मध्यमान 75-30
दैनिक पंचांग विवरण
आज दिनांक……………….. .03.10.2024
कलियुग संवत्…………………………5126
विक्रम संवत्………………………….. 2081
शक संवत्……………………………..1946
संवत्सर………………………….श्री कालयुक्त
अयन………………………………दक्षिणायन
गोल…………………………………… दक्षिण
ऋतु………………………………………शरद्
मास………………………………….. आश्विन
पक्ष……………………………………..शुक्ला
तिथि….प्रतिपदा. रात्रि. 2.58* तक / द्वितीया
वार…………………………………….गुरुवार
नक्षत्र………..हस्त. अपरा. 3.32 तक / चित्रा
चंद्रराशि…… कन्या. रात्रि. 5.06* तक / तुला
योग………….ऐंद्र. रात्रि. 4.23* तक / वैधृति
करण………….. किंस्तुघ्न. अपरा. 1.38 तक
करण………. बव. रात्रि. 2.58* तक / बालव
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नोट-जिस रात्रि समय के ऊपर(*) लगा हुआ हो
वह समय अर्द्ध रात्रि के बाद सूर्योदय तक का है
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विभिन्न नगरों के सूर्योदय में समयांतर मिनट
दिल्ली -10 मिनट———जोधपुर +6 मिनट
जयपुर -5 मिनट——अहमदाबाद +8 मिनट
कोटा – 5 मिनट————-मुंबई +7 मिनट
लखनऊ – 25 मिनट——बीकानेर +5 मिनट
कोलकाता -54 मिनट–जैसलमेर +15 मिनट
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-सूर्योंदयास्त दिनमानादि-अन्य आवश्यक सूची-
सूर्योदय…………………. प्रातः 6.25.39 पर
सूर्यास्त…………………. सायं. 6.14.40 पर
दिनमान-घं.मि.सै…………………11.49.00
रात्रिमान-घं.मि.सै……………….. 12.11.24
चंद्रास्त…………………….6.32.47 PM पर
चंद्रोदय……………………6.57.07 AM पर
राहुकाल..अपरा. 1.49 से 3.17 तक(अशुभ)
यमघंट……प्रातः 6.26 से 7.54 तक (अशुभ)
गुलिक……………प्रातः 9.23 से 10.52 तक
अभिजित………मध्या.11.57 से 12.44 तक
पंचक…………………………………. .नहीं है
हवन मुहूर्त(अग्निवास)………………..आज है
दिशाशूल………………………… दक्षिण दिशा
दोष परिहार……. दही का सेवन कर यात्रा करें
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विशिष्ट काल-मुहूर्त-वेला परिचय
अभिजित् मुहुर्त – दिनार्द्ध से एक घटी पहले और एक घटी बाद का समय अभिजित मुहूर्त कहलाता है,पर बुधवार को यह शुभ नहीं होता.
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ब्रह्म मुहूर्त – सूर्योदय से पहले का 1.30 घंटे का समय ब्रह्म मुहूर्त कहलाता है..
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प्रदोष काल – सूर्यास्त के पहले 45 मिनट और बाद का 45 मिनट प्रदोष माना जाता है…
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गौधूलिक काल सूर्यास्त से 12 मिनट पहले एवं 12 मिनट बाद का समय कहलाता है
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भद्रा वास शुभाशुभ विचार
भद्रा मेष, वृष, मिथुन, वृश्चिक के चंद्रमा में स्वर्ग में व कन्या, तुला, धनु, मकर के चंद्रमा में पाताल लोक में और कुंभ, मीन, कर्क, सिंह के चंद्रमा में मृत्युलोक में मानी जाती है यहां स्वर्ग और पाताल लोक की भद्रा शुभ मानी जाती हैं और मृत्युलोक की भद्रा काल में शुभ कार्य वर्जित होते हैं इसी तरह भद्रा फल विचार करें..
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दैनिक सूर्योदय कालीन लग्न एवं ग्रह स्पष्ट
ग्रह राशि अंश कला नक्षत्र चरण चरणाक्षर
लग्न …………….. कन्या 15°48′ हस्त 2 ष
सूर्य ……………….. कन्या 16°7′ हस्त 2 ष
चन्द्र …………….. कन्या 18°52′ हस्त 3 ण
बुध ^ ……………. कन्या 17°48′ हस्त 3 ण
शुक्र ……………. तुला 17°54′ स्वाति 4 ता
मंगल ………… मिथुन 21°43′ पुनर्वसु 1 के
बृहस्पति ……. हवृषभ 27°2′ मृगशीर्षा 2 वो
शनि * …….. कुम्भ 20°6′ पूर्वभाद्रपदा 1 से
राहू * …….. मीन 12°8′ उत्तरभाद्रपदा 3 झ
केतु * ……………… कन्या 12°8′ हस्त 1 पू
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दिन का चौघड़िया
शुभ……………….प्रातः 6.26 से 7.54 तक
चंचल………….पूर्वा. 10.52 से 12.20 तक
लाभ…………..अपरा. 12.20 से 1.49 तक
अमृत……………अपरा. 1.49 से 3.17 तक
शुभ……………….सायं. 4.46 से 6.15 तक
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रात्रि का चौघड़िया
अमृत………. सायं-रात्रि. 6.15 से 7.46 तक
चंचल…………….. रात्रि. 7.46 से 9.18 तक
लाभ… रात्रि. 12.20 AM से 1.52 AM तक
शुभ……रात्रि. 3.23 AM से 4.55 AM तक
अमृत…. रात्रि. 4.55 AM से 6.26 AM तक
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(विशेष – ज्योतिष शास्त्र में एक शुभ योग और एक अशुभ योग जब भी साथ साथ आते हैं तो शुभ योग की स्वीकार्यता मानी गई है )
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शुभ शिववास की तिथियां
शुक्ल पक्ष-2—–5—–6—- 9——-12—-13.
कृष्ण पक्ष-1—4—-5—-8—11—-12—-30.
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दिन नक्षत्र एवं चरणाक्षर संबंधी संपूर्ण विवरण
संदर्भ विशेष -यदि किसी बालक का जन्म गंड नक्षत्रों (रेवती, अश्विनी, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा और मूल) में होता है तो सविधि नक्षत्र शांति की आवश्यक मानी गयी है और करवाना चाहिये..
आज जन्मे बालकों का नक्षत्र के चरण अनुसार राशिगत् नामाक्षर..
08.44 AM तक——हस्त—-3——-ण
03.32 PM तक——हस्त—-4——–ठ
10.18 PM तक——चित्रा—-1——-पे
05.06 AM तक——चित्रा—-2——पो
राशि कन्या – पाया चांदी
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उपरांत रात्रि तक——चित्रा—3——-रा
राशि तुला – पाया चांदी
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आज का दिन 03/10/2024
व्रत विशेष…………………………….. नहीं है
अन्य व्रत………….नवरात्रि व्रत विधान प्रारंभ
दिन विशेष…… शारदीय नवरात्रि घट स्थापना
नवरात्रि विशेष…… प्रथम् (मां शैलपुत्री पूजन)
दिन विशेष…….. महाराज श्री अग्रसेन जयंती
श्राद्ध विशेष………………….. मातामह श्राद्ध
पर्व विशेष………………………………नहीं है
समय विशेष……पवित्र चातुर्मास विधान जारी
दिवस विशेष………………………….. नहीं है
पंचक…………………………………. .नहीं है
विष्टि(भद्रा)……………………………. नहीं है
हवन मुहूर्त…………………………… आज है
खगोलीय.. शतभिषायां 4 शनि.अप. 3.01 पर
सर्वा.सि.योग………………………… .. नहीं है
अमृत सि.योग………………………… .नहीं है
सिद्ध रवियोग…………………………. नहीं है
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अगले दिन की प्रतीकात्मक जानकारी
दिनांक………………………..04.10.2024
तिथि………. आश्विन शुक्ला द्वितीया शुक्रवार
व्रत विशेष………………………………नहीं है
अन्य व्रत……………नवरात्रि व्रत विधान जारी
दिन विशेष………………. चंद्रदर्शन सायंकाल
नवरात्रि क्रम….द्वितीय (मां ब्रह्मचारिणी पूजन)
पर्व विशेष……………………………….नहीं है
समय विशेष…….पवित्र चातुर्मास विधान जारी
दिवस विशेष………………….विश्व पशु दिवस
पंचक…………………………………. ..नहीं है
विष्टि(भद्रा)…………………………….. नहीं है
हवन मुहूर्त………………………..आज नहीं है
खगोलीय. विशाखायां. शुक्र. रात्रि.12.13* पर
सर्वा.सि.योग………………………… .. नहीं है
अमृत सि.योग………………………… . नहीं है
सिद्ध रवियोग…………………………. नहीं है
आज विशेष
Panchang Today: October 03, 2024
नवरात्रि में मां दुर्गा के 9 रूपों की पूजा का महत्व समझिये
कलश स्थापना मुहूर्त
अक्टूबर दिन गुरुवार से शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ हो रहे हैं और 11 अक्टूबर को इनका समापन होगा। नवरात्रि के नौ दिनों में मां भगवती के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं अनुसार, विधि विधान के साथ मां दुर्गा की पूजा अर्चना करने से जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति होती है और परिवार के सदस्यों की उन्नति भी होती है। आइए जानते हैं नवरात्रि कलश स्थापना मुहूर्त और नवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व…
या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः, पापात्मनां कृतघियां हृदयेषुवृद्धिः।
श्रद्धा सतांकुलजन प्रभवस्य लज्जा, तां त्वां नताः स्म परिणालय देवी विश्वम्।।
जो देवी पुण्यात्माओं के घरों में स्वयं ही लक्ष्मी रूप से, पापियों के यहां दरिद्रतारूप से, शुद्धान्तःकरण वाले पुरुषों के हृदयों में बुद्धिरूप से सत्पुरुषों में श्रद्धारूप से और कुलीन मनुष्यों में लज्जारूप से निवास करती है, उन आप भगवती को हम सब श्रद्धापूर्वक नमन करते है। हे पराम्बा! समस्त विश्व का कल्याण कीजिए।
कलश स्थापना मुहूर्त
नवरात्र को आद्याशक्ति की आराधना का सर्वश्रेष्ठ काल माना गया है। नवरात्र वृद्धि आश्विन शुक्ला प्रतिपदा को अशुभ नक्षत्र चित्रा और वैधृति योग का अभाव एवं शुक्ला तृतीया तिथि की वृद्धि होने से नवरात्र विशेष शुभ एवं राष्ट्र के शत्रुओं का पराभवकारी सिद्ध होगा। घटस्थापन मंदिरों और शक्तिपीठों में सुबह 4:09 से 5:07 तक विशेष शुभ रहेगा। भगवती की पूजा के लिए बनाए गए विशेष पंडालों और घरों में सुबह 9:40 से 11:50 तक वृश्चिक लग्न में सामान्य शुभ रहेगा। देवगुरु बृहस्पति की संपूर्ण शुभदृष्टि होने के कारण लग्न बलवती समझी जाएगी।
नवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व
सवंत्सर (वर्ष) में चार नवरात्र होते है। चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी पर्यंत नौ दिन नवरात्र कहलाते है। इन चार नवरात्रों में दो गुप्त और दो प्रकट, चैत्र का नवरात्र वासंतिक और आश्विन का नवरात्र शारदीय नवरात्र कहलाता है। वासंतिक नवरात्र के अंत में रामनवमी आती है और शारदीय नवरात्र के अंत में दुर्गा महानवमी इसलिए इन्हें राम नवरात्र और देवी नवरात्र भी कहते है। किंतु शाक्तों की साधना में शारदीय नवरात्र को विशेष महत्व दिया गया है। इसी कारण बंगाल में दुर्गा पूजा मुख्यतः शारदीय नवरात्र में ही होती है। ऋृग्वेद में शारदीय शक्ति दुर्गा पूजा का उल्लेख मिलता है। बंगाल में विशाल प्रतिमाओं में सप्तमी, अष्टमी और महानवमी को दुर्गापूजा होती है। जगन्माता को यहां कन्या रूप से अपनाया गया है, मानो विवाहिता पुत्री पति के घर से पुत्र सहित तीन दिन के लिए माता-पिता के पास आती है। मां दस भुजाओं में दस प्रकार के आयुध धारण कर शेर पर सवार होकर, महिषासुर कें कंधे पर अपना एक चरण रखे त्रिशूलद्वारा उसका वध कर रही होती है। शारदीय शक्ति पूजा को विशेष लोकप्रियता त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम चंद्र के अनुष्ठान से भी मिली। देवी भागवत में भगवान श्रीरामचंद्र द्वारा किए गए शारदीय नवरात्र के व्रत तथा शक्ति पूजन का सुविस्तृत वर्णन मिलता है। इसके अनुसार, श्रीराम की शक्ति पूजा सम्पन्न होते ही जगदंबा प्रकट हो गई थीं। शारदीय नवरात्र के व्रत का पारण करके दशमी के दिन श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई कर दी। रावण का वध करके कार्तिक कृष्ण अमावस्या को श्रीरामचंद्र भगवती सीता को लेकर अयोध्या लौट आए।
इन 9 देवियों की होगी पूजा
नवरात्र के नौ दिनों में प्रतिदिन एक शक्ति की पूजा का विधान है। सृष्टि की संचालिका कही जाने वाली आदिशक्ति की नौ कलाएं (विभूतियां) नवदुर्गा कहलाती हैं। ‘मार्कण्डेय पुराण’ में नवदुर्गा का शैलपुत्री, बह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री के रूप में उल्लेख मिलता है। नवरात्र के दौरान कन्या पूजन के बिना भगवती महाशक्ति कभी प्रसन्न नहीं होतीं। कन्या पूजन के माध्यम से ऋषि-मुनियों ने हमें स्त्री वर्ग के सम्मान की ही शिक्षा दी है। नवरात्र में देवी भक्तों को यह संकल्प लेना चाहिए कि वह आजीवन बच्चियों और महिलाओं को सम्मान देगा और उनकी सुरक्षा के लिए सदैव प्रयत्नशील रहेगा। तभी सही मायनों में नवरात्र की शक्ति पूजा संपन्न होगी। तभी हमारा और समाज में भी जागरण होगा।
शारदीय नवरात्रि (2024)
3 अक्टूबर – मां शैलपुत्री की पूजा
4 अक्टूबर – मां ब्रह्मचारिणी की पूजा
5 अक्टूबर – मां चंद्रघंटा की पूजा
6 अक्टूबर – मां कूष्मांडा की पूजा
7 अक्टूबर – मां स्कंदमाता की पूजा
8 अक्टूबर – मां कात्यायनी की पूजा
9 अक्टूबर – मां कालरात्रि की पूजा
10 अक्टूबर – मां महागौरी की पूजा
11 अक्टूबर – मां सिद्धिदात्री की पूजा
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दैनिक जीवन में पंचांग का महत्व
आधुनिक समय में भी पंचांग एक अमूल्य साधन बना हुआ है, जो लाखों लोगों को शादी, सगाई, यात्रा, व्यापारिक उद्यम और धार्मिक समारोहों जैसे महत्वपूर्ण निर्णय लेने में मार्गदर्शन करता है। यह केवल एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि यह ब्रह्मांडीय ज्ञान का भंडार है, जो विशेष ज्योतिषीय संयोजनों के दौरान की गई गतिविधियों के परिणामों को प्रभावित करने में सक्षम माना जाता है।
तिथि: चंद्र दिवस
तिथि चंद्रमा के चरण को दर्शाती है और अनुष्ठानों और समारोहों के लिए शुभ समय निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसमें 30 तिथियाँ होती हैं, जिनमें प्रत्येक तिथि सूर्य और चंद्रमा के बीच के विशिष्ट कोण का प्रतिनिधित्व करती है। प्रतिपदा (पहले दिन) से लेकर अमावस्या (नई चंद्र) और पूर्णिमा (पूर्ण चंद्र) तक, प्रत्येक तिथि का विशिष्ट महत्व होता है, जो मानव भावनाओं, क्रियाओं और आध्यात्मिक प्रयासों को प्रभावित करता है।
वार: सप्ताह का दिन
वार सप्ताह के दिनों को संदर्भित करता है, और प्रत्येक दिन एक देवता से जुड़ा होता है। विभिन्न सप्ताह के दिनों का विशिष्ट गतिविधियों पर प्रभाव को समझने से उत्पादकता और सफलता को अधिकतम करने में मदद मिलती है। उदाहरण के लिए, सोमवार, जिसे चंद्रमा का दिन माना जाता है, नए कार्यों की शुरुआत के लिए शुभ होता है, जबकि शनिवार, जो शनि से शासित होता है, आध्यात्मिक अभ्यास और आत्म-निरीक्षण के लिए अनुकूल होता है।
नक्षत्र: चंद्र नक्षत्र
नक्षत्र 27 चंद्र नक्षत्रों को दर्शाता है जिनसे चंद्रमा अपने मासिक चक्र के दौरान गुजरता है। प्रत्येक नक्षत्र मानव गतिविधियों पर एक विशिष्ट प्रभाव डालता है, जैसे व्यक्तित्व गुण, करियर के चुनाव, और संबंधों की गतिशीलता। अनुकूल नक्षत्रों के साथ कार्यों को संरेखित करने से व्यक्ति की समृद्धि और भलाई को बढ़ावा मिल सकता है।
योग: संयोजन
योग सूर्य और चंद्रमा की स्थितियों द्वारा बनाए गए शुभ या अशुभ संयोजनों को दर्शाता है। 27 योग होते हैं, जिनमें से प्रत्येक के अनूठे गुण और प्रभाव होते हैं। शुभ योगों की ऊर्जा का उपयोग करके व्यक्ति अपने प्रयासों में सफलता और संतुष्टि प्राप्त कर सकता है।
करण: आधा चंद्र दिवस
करण तिथि का आधा हिस्सा होता है और कार्यों की शुरुआत को प्रभावित करता है। 11 करण होते हैं जिन्हें दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है – स्थिर और चल। कार्यों की शुरुआत के लिए एक उपयुक्त करण का चयन करना अनुकूल परिणाम सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण होता है।
Panchang Today: October 03, 2024
तिथि विश्लेषण
कृष्ण पक्ष द्वादशी: आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने और परोपकारी कार्यों में संलग्न होने के लिए आदर्श।
रोहिणी नक्षत्र: कलात्मक गतिविधियों, रचनात्मकता और संबंधों के पोषण के लिए अनुकूल।
वृद्धि योग: विकास-उन्मुख गतिविधियों और वित्तीय निवेशों के लिए उपयुक्त।
तैतिल करण: सहनशक्ति और धैर्य की आवश्यकता वाले कार्यों के लिए अनुकूल।
पंचांग की शक्ति का उपयोग
दैनिक जीवन में पंचांग के अंतर्दृष्टियों को शामिल करने से व्यक्ति को ब्रह्मांडीय लय के साथ सामंजस्य स्थापित करने में मदद मिलती है, जिससे वे ज्ञान और गरिमा के साथ चुनौतियों का सामना कर सकते हैं। पंचांग द्वारा प्रदान किए गए मार्गदर्शन का उपयोग करके, व्यक्ति सभी प्रयासों में सफलता और संतुष्टि के अवसरों को अधिकतम कर सकता है।
निष्कर्ष
पंचांग अपने जटिल ज्ञान और ब्रह्मांडीय अंतर्दृष्टियों के साथ जीवन की यात्रा में मार्गदर्शन का दीपस्तंभ है। इसके शिक्षाओं को अपनाने से व्यक्ति समृद्धि के मार्ग पर आगे बढ़ता है, अपने कार्यों को ब्रह्मांडीय ऊर्जा के साथ संरेखित कर संपूर्ण कल्याण प्राप्त करता है।